Wednesday, August 31, 2016

सिमटी हुई ये घडियां

सिमटी हुई ये घडियां
फिर से ना बिखर जाये
इस रात मे जी ले हम
इस रात मे मर जाए

अब सुबह ना आ पाये
आओ ये दुआ मांगे
इस रात के हर पल से
रातें ही उभर जाए

दुनिया की निगाहें अब
हम तक ना पहूंच पाये
तारों मे बसे चलकर
धरती मे उतर जाए

हालात के तिरों से
छलनी है बदन अपने
पास आओ के सिनों के
कुछ जख़म तो भर आये

आगे भी अंधेरा है
पीछे भी अंधेरा है
अपनी हैं वही सांसे
जो साथ गुजर जाये

बिछड़ी हुई रूहोंका
ये मेल सुहाना है
इस मेल का कुछ ऐहसान
जिस्मों पे भी भर जाए

तरसे हुए जज्बों को
अब और न तरसाओ
तुम शाने पे सर रख दो
हम बाँहों में भर जाए

शायर : साहिर लुधयानवी
आवाज : रफी - लता
संगीत : खय्याम
फिल्म : चंबल की कसम (१९८०)

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