एक अकेला इस शहर में, रात में और दोपहर में
आबोदाना ढूँढता है, आशियाना ढूँढता हैं
दिन खाली खाली बर्तन है, और रात हैं जैसे अंधा कुवां
इन सूनी अंधेरी आखों में, आँसू की जगह आता हैं धुंआ
जीने की वजह तो कोइ नहीं, मरने का बहाना ढूँढता है
इन उम्र से लंबी सडकों को, मंजिल पे पहुचते देखा नहीं
बस दौड़ती, फिरती रहती है, हम ने तो ठहरते देखा नहीं
इस अजनबी से शहर में, जाना पहचाना ढूँढता है
गीतकार : गुलजार
गायक : भूपेंद्र
संगीतकार : जयदेव
चित्रपट : घरोंदा
Thursday, March 13, 2014
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