Saturday, July 5, 2008

कही करती होगी, वो मेरा इन्तजार

कही करती होगी, वो मेरा इन्तजार जिसकी तमन्ना में, फ़िरता हूं बेकरार

दूर जुल्फ़ों की छांवों से, कहता हूं ये हवाओं से
उसी बूत की अदाओं के अफ़साने हजार
वो जो बाहों में मचल जाती, हसरत ही निकल जाती
मेरी दुनियां बदल जाती, मिल जाता करार

अरमां हैं कोई पास आये, इन हाथों में वो हाथ आये
फ़िर ख्वाबों की घटा छये, बरसाये खूमार
फ़िर उन ही दिनरातों पे, मतवारी मुलाकातों पे
उल्फ़त भरी बातों पे, हम होते निसार

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