Sunday, May 26, 2013

मेरी आवाज़ सुनो

मेरी आवाज़ सुनो प्यार का राज़ सुनो 
मैंने एक फूल जो सीने पे सजा रक्खा था 
उसके परदे में तुम्हे दिल से लगा रक्खा था 
था जुदा सबसे मेरे इश्क का अंदाज़ सुनो 
मेरी आवाज़ सुनो…. 

ज़िन्दगी भर मुझे नफ़रत सी रही अश्कों से 
मेरे ख्वाबों को तुम अश्कों में डुबोते क्यों हो 
जो मेरी तरह जिया करते हैं कब मरते हैं 
थक गया हूँ मुझे  सो लेने  दो क्यों रोते हो  
सो के भी जागते ही रहते हैं जांबाज़ सुनो 

मेरी आवाज़ सुनो….


मेरी दुनिया में न पूरब हैं न  पश्चिम कोई 
सारे इंसान सिमट आये खुली बाहों में 
कल भटकता था मैं जिन राहों में तनहा तनहा 
काफिले कितने मिले आज उन्हीं राहों में 
और सब निकले मेरे हमदर्द मेरे हमराज़ सुनो 
मेरी आवाज़ सुनो….

नौनिहाल आते हैं अर्थी को किनारे कर  लो 
मैं जहाँ था इन्हें जाना है वहां से आगे 
आसमान इनका ज़मीन इनकी ज़माना इनका 
हैं कई इनके जहाँ मेरे जहाँ से आगे 
इन्हें कलियाँ न कहो ये चूम-न-साज़ सुनो 
मेरी आवाज़ सुनो…. 

क्यों संवरी है ये चन्दन की चीता मेरे  लिए 
मैं कोइन जिस्म नहीं हूँ जलाओगे मुझे 
राख के साथ बिखर जाऊँगा मैं दुनिया में 
तुम जहाँ खाओगे ठोकर वहीं पाओगे मुझे 
हर कदम पर है नई मोड़ का आगाज़ सुनो 

मेरी आवाज़ सुनो प्यार का राज़ सुनो 
मैंने एक फूल जो सीने पे सजा रक्खा था 
उसके परदे में तुम्हे दिल से लगा रक्खा था 
था जुदा सबसे मेरे इश्क का अंदाज़ सुनो 
मेरी आवाज़ सुनो…. 

शब्द : कैफ़ी आज़मी 
गायक : मोहम्मद रफ़ी 
संगीत : मदन मोहन 
चित्रपट : नौनिहाल 

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