Friday, May 17, 2013

कतरा कतरा मिलती है

कतरा कतरा मिलती है
कतरा कतरा जीने दो
ज़िंदगी है, बहने दो
प्यासी हूँ मैं, प्यासी रहने दो

कल भी तो कुछ ऐसा ही हुआ था
नींद में थी तुमने जब छुआ था
गिरते गिरते बाहों में बची मैं
सपने पे पाँव पड़ गया था
सपनों में बहने दो
प्यासी हूँ मैं, प्यासी रहने दो
कतरा कतरा मिलती है...

तुमने तो आकाश बिछाया
मेरे नंगे पैरों में ज़मीं है
बाकी भी तुम्हारी आरज़ू हो
शायद ऐसे ज़िन्दगी हंसीं है
आरज़ू में बहने दो 
प्यासी हूँ मैं, प्यासी रहने दो
कतरा कतरा मिलती है...

हलके हलके कोहरे के धुंए में
शायद आसमां तक आ गयी हूँ
तेरी दोनों बाहों के सहारे
देखो कहाँ तक आ गयी हूँ
कोहरे में बहने दो
प्यासी हूँ मैं, प्यासी रहने दो
कतरा कतरा मिलती है...

गुलज़ार/आर.डी.बर्मन/ आशा भोंसले


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