अपनी ख़ुशी से अपना ही दिल तोड़ना पड़ा
दुनिया की महफिलों से भी मुंह मोड़ना पड़ा
अपनी ख़ुशी से....
घबराके दिल का दर्द जो अश्कों में ढल गया
पलकों में आते आते उसे रोकना पड़ा
दुनिया की महफिलों से भी मुंह मोड़ना पड़ा
अपनी ख़ुशी से.....
साया भी साथ छोड़ के जाने किधर गया
मुड मुड कितनी बार मुझे देखना पड़ा
दुनिया की महफिलों से भी मुंह मोड़ना पड़ा
अपनी ख़ुशी से....
हम कौन है कहाँ के है और किस जगह पे है
तनहाइयों में ये भी कभी सोचना पड़ा
दुनिया की महफिलों से भी मुंह मोड़ना पड़ा
अपनी ख़ुशी से.....
गीत : राजेंद्र कृष्ण
संगीत : घनश्याम
गायिका : लता मंगेशकर
चित्रपट : कुंवारा बदन (१९७३)
Tuesday, June 4, 2013
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