Thursday, June 6, 2013

कल रात ज़िन्दगी से

कल रात ज़िन्दगी से मुलाकात हो गयी
लब थरथरा रहे थे मगर बात हो गयी
कल रात ज़िन्दगी से ....

एक हुस्न सामने था क़यामत के रूप में
एक ख्वाब जल्वागर था हकीकत के रूप में
चेहरा वही गुलाब की रंगत लिए हुए
नज़रें वहीँ पायं-ए -मुहब्बत लिए हुए
जुल्फे वाही की जैसे धुन्दालाका हो शाम का
कुछ देर को तसल्ली-ए -जज़्बात हो गयी
लब थरथरा रहे ....


देखा उसे तो दामन-ए -रुक्सार नम भी ठाट
वल्लाह उसके दिल को कुछ एहसास-ए -गम भी था
थे उसली हसरतों के खजाने लुटे हुए
लैब पर तड़प रहे थे फ़साने घुटे हुए
कांटे चुभे हुए थे सिसकती उमंग में
डूबी हुई थी फिर भी वफाओं के रंग में
दम भर को ख़त्म गर्दिश-ए -हालत हो गयी
लब थरथरा रहे ....

ए मेरी रूह-ए -इश्क मेरी जान-ए -शायरी
दिल मानता नहीं की तू मुझसे बिछड़ गयी
मायूसियां हैं फिर भी मेरे दिल को आस है
महासून हो रहा है के तू मेरे पास है
समझाऊँ किस तरह से दिल-ए -बेक़रार को
वापस कहाँ से लाऊं में गुज़री बहार को
मजबूर दिल के साथ बड़ी घात हो गई
लब थरथरा रहे ....

शायर : शकील बदायुनी
आवाज : महम्मद रफ़ी
तर्ज : नौशाद

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