कहीं एक मासूम नाज़ुकसी लडकी बहुत खुबसूरत मगर सामने से बहुत खुबसूरत
मुझे अपने ख्वाबों की बाहों मे पाकर
कभी नींद मे मुस्कुराती तो होगी
उसी नींद गर्म सांसे उठाकर
सरनेसे तकिये गिराती तो होगी कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लडकी
चलो खत लिखे जी में आता तो होगा
मगर उंगलियां कप कपाती तो होंगी
कलम हाथ से छुट जाता तो होगा
उमंगे कलम फिर उठाती तो होंगी
मेरा नाम अपनी कीताबों मे लिख कर
वोह
दातों में उन्गली दबाती तो होगी
कहीं एक मसूम नाज़ुक सी लडकी
ज़ुबां से कहीं उफ़्फ़ निकलती तो होगी
बदन धिरे धिरे सिमट ता तो होगा
कहिं पे पांओ पडते तो होंगे ज़मीं पर दुपट्टा सिसकता
तो होगा
कभी सुबह को शाम कहती तो होंगी कभी रात को दिन बताती तो होंगी कहीं एक मासूम
नाज़ुक सी लडकी बहुत खुबसूरत मगर सामने से बहुत खुबसूरत
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1 comment:
bahut khoob.
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