Monday, August 9, 2010

बहारें फ़िर भी आयेंगी

बदल जाये अगर माली, चमन होता नहीं खाली
बहारें फ़िर भी आती है, बहारें फ़िर भी आयेंगी

थकन कैसी, घूटन कैसी, चल अपनी धून में दिवाने
खिला ले फ़ूल काटों मे, सजा ले अपने विराने
हवायें आग भडकाये, फ़जायें जहर बरसाये
बहारें फ़िर भी आती है, बहारें फ़िर भी आयेंगी

अंधेरे क्या, उजाले क्या, ना ये अपने ना वो अपने
तेरे काम आयेंगे प्यारे, तेरे अरमां, तेरे सपनें
जमाना तुज़ पे हो बरहुम न आये राहभर मौसम
बहारें फ़िर भी आती है, बहारें फ़िर भी आयेंगी

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