कहीं दूर ज़ब दिन ढल जाए
सांझ कि दुल्हन बदन चुराए
चुपके से आए
मेरे खयालों के आंगन में
कोइ सपनों के दीप ज़लाए
कभी युं ही जब हुइ बोझल सांसें
भर आइ बैठे बैठे जब युं ही आंखें
कभी मचल के प्यार से चल के
छुए कोइ मुझे पर नज़र न आए
कहीं दूर...
कहीं तो ये दिल कभी मिल नहीं पाते
कहीं पे निकल आए जनमों के नाते
थमी थी उल्झन बैरी अपना मन
अपना ही होके सहे दर्द पराये
कहीं दूर...
गीतकार : योगेश
संगीत : सलिल चौधरी
गायक : मुकेश
फ़िल्म : आनंद
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1 comment:
hut khub... aap ka shukriya ...
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