Monday, August 11, 2008

कहीं दूर ज़ब

कहीं दूर ज़ब दिन ढल जाए
सांझ कि दुल्हन बदन चुराए
चुपके से आए
मेरे खयालों के आंगन में
कोइ सपनों के दीप ज़लाए

कभी युं ही जब हुइ बोझल सांसें
भर आइ बैठे बैठे जब युं ही आंखें
कभी मचल के प्यार से चल के
छुए कोइ मुझे पर नज़र न आए
कहीं दूर...

कहीं तो ये दिल कभी मिल नहीं पाते
कहीं पे निकल आए जनमों के नाते
थमी थी उल्झन बैरी अपना मन
अपना ही होके सहे दर्द पराये
कहीं दूर...

गीतकार : योगेश
संगीत : सलिल चौधरी
गायक : मुकेश
फ़िल्म : आनंद

1 comment:

Anwar Qureshi said...

hut khub... aap ka shukriya ...