Saturday, January 5, 2013

तुम बिन जाऊं कहाँ

किशोर 

तुम बिन जाऊं कहाँ
की दुनिया में  के
कुछ  फिर चाहा कभी
तुमको चाह के
तुम बिन..

रह भी सकोगे तुम कैसे हो के मुझसे जुदा
फट जाएँगी दीवारें सुन के मेरी सदा
आना होगा तुम्हें मेरे लिए साथी मेरी
सूनी राह के..
तुम बिन..

इतनी अकेली सी पहले थी यही दुनिया
तुमने नज़र जो मिलायी बस गयी दुनिया
दिल को मिली जो तुम्हारी लगन दिए जल गए
मेरी आह के..
तुम बिन..


रफ़ी

देखो मुझे सर से कदम तक सिर्फ प्यार हूँ मैं 
गले से लगा लो के तुम्हाराबेकरार हूँ मैं
तुम क्या जानो के भटकता फिरा किस-किस गली
तुमको चाह के
तुम बिन...

अब है सनम हर मौसम प्यार के काबिल
पड़ी जहाँ छाँव हमारी सज गयी महफ़िल
महफ़िल क्या तन्हाई में भी लगता है जी
तुमको चाह के
तुम बिन...

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