आजकल पाँव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे
बोलो , देखा है कभी तुमने मुझे उड़ते हुए
जब भी थामा है तेरा हाथ तो देखा है
लोग कहते हैं कि बस हाथ की रेखा है
हमने देखा है दो तक़दीरों को जुड़ते हुए
आजकल पाँव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे
नींद-सी रहती है , हलका-सा नशा रहता है
रात-दिन आँखों में इक चेहरा बसा रहता है
पर-लगी आँखों को देखा है कभी उड़ते हुए
आजकल पाँव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे
जाने कया होता है , हर इक बात पे कुछ होता है
दिन में कुछ होता है और रात में कुछ होता है
थाम लेना , जो कभी देखो हमें उड़ते हुए
आजकल पाँव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे
बोलो , देखा है कभी तुमने मुझे उड़ते हुए
Thursday, January 3, 2013
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