Wednesday, July 28, 2010

जैसे सूरज की गम्री से

जैसे सूरज की गम्री से जलते हुये तन को मिल जाये तरुवर की छाया
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला हैन मैं जब से शरन तेरी आया, मेरे राम

भटका हुआ मेरा मन था कोई, मिल ना रहा था सहारा
लहरों से लडती हुई नाव को जैसे मिल ना रहा हो किनारा
उस लडखडाती हुई नाव को जो किसी ने किनारा दिखाया

शीतल बने आग चन्दन के जैसी, राघव क्रिपा हो जो तेरी
उजियाली पूनम की हो जाये रातें, जो थी अमावस अंधेरी
युग युग से प्यासी मरुभूमी में जैसे सावन का सन्देस पाया

जिस राह की मन्जिल तेरा मिलन हो, उस पर कदम मैं बढाऊ
फ़ुलोन मेइं खारों मेइं, पतझड बहारों में, मै ना कभी डगमगाऊ
पानी के प्यासे को तकदीर ने जैसे जी भर के अमरित पिलाया

4 comments:

समय चक्र said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति....आभार

SANSKRITJAGAT said...

मम प्रियं गीतमस्ति एतत्


भवतां हार्दिक धन्‍यवाद:

yog in glasgow said...

This was one of my favourite morning bhajan on ALASHVANI @ early morning 6.30 am

Thanks Abhay 4 bringing back d fond memories..............

yog in glasgow said...

This was one of my favourite morning bhajan on ALASHVANI @ early morning 6.30 am

Thanks Abhay 4 bringing back d fond memories..............